Hospital Fire : झांसी मेडिकल कॉलेज में आग लगने से नवजात शिशुओं की मौत बहुत बड़ी और भयानक घटना है जो अस्पतालों में आग के जोखिम को फिर से उजागर करती है। भारत में बीते पांच साल में अस्पतालों में आग की दो सौ से ज्यादा घटनाएं घट चुकी हैं। देश के अस्पतालों में आग पर एक बड़ी रिसर्च भी हुई है। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ कम्युनिटी मेडिसिन एंड पब्लिक हेल्थ के अध्ययन में पाया गया कि आग लगने का सबसे आम कारण 78 फीसदी बिजली का शॉर्ट सर्किट बताया गया था। इसमें भी शॉर्ट सर्किट के लिए एयर कंडीशनर सबसे आम स्रोत थे।
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ कम्युनिटी मेडिसिन एंड पब्लिक हेल्थ में 2020 में प्रकाशित एक अध्ययन में भारतीय अस्पतालों में आग लगने की 33 बड़ी दुर्घटनाओं का विश्लेषण किया गया, जिनमें से 25 सरकारी अस्पतालों में हुईं थीं। अध्ययन में पाया गया कि 33 अस्पतालों में से सिर्फ 19 में ही अग्निशमन प्रणाली काम कर रही थी। फेलियर एनालिसिस नामक एक अन्य रिसर्च के अनुसार, भारत में 2010 से 2023 तक आग की घटनाओं में अधिकांश आग बिजली के शॉर्ट सर्किट और अस्पताल बिल्डिंग में अग्नि सुरक्षा और नियंत्रण प्रणालियों में फेलियर के कारण लगी थीं।
Hospital Fire : आईसीयू सबसे संवेदनशील
अध्ययन के अनुसार 10 मामलों में आग गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) में या उसके आस-पास लगी। 72.72 फीसदी दुर्घटनाएँ रात में (रात 8:01 बजे से सुबह 7:59 बजे तक) हुईं। 39 फीसदी आग दुर्घटनाओं में हताहतों की संख्या दर्ज की गई।
- 20 दिसंबर 2018 : ईएसआईसी कामगार अस्पताल, अंधेरी, मुंबई – तीसरी/चौथी मंजिल पर शॉर्ट सर्किट से आग में 8 मरे, 145 घायल।
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- 18 अक्टूबर 2016 : एसयूएम अस्पताल, भुवनेश्वर, ओडिशा – डायलिसिस यूनिट और आईसीयू में शार्ट सर्किट से आग – 22 मरे, 120 घायल।
- 2016 27 अगस्त 2016 : मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज अस्पताल, पश्चिम बंगाल – दूसरी मंजिल पर वार्ड में शॉर्ट सर्किट से आग – 3 मरे, 50 घायल।
- 9 दिसंबर 2011 : एएमआरआई अस्पताल कोलकाता, पश्चिम बंगाल : बेसमेंट में ज्वलनशील पदार्थ से आग फैली : 90 की मौत।
- 2 फ़रवरी 2010 : पार्क सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल प्राइवेट हैदराबाद – ग्राउंड फ़्लोर में शॉर्ट सर्किट से आग – 43 घायल।
- जनवरी 2021, महाराष्ट्र के भंडारा सिविल अस्पताल में आग लगने से 10 बच्चों की मौत।
- दिल्ली में मई 2024 में प्राइवेट अस्पताल में आग से 7 नवजात शिशुओं की मौत।
- अगस्त 2020 से अगस्त 22 तक के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत भर में प्रमुख अस्पतालों में आग लगने की 29 घटनाओं में 122 लोगों की मौत हो गई। इसी दौरान दिल्ली में अस्पताल में आग की 66 घटनाएं घटीं।
Hospital Fire : क्या कहता है बिल्डिंग कोड
भारत की राष्ट्रीय भवन संहिता के तहत, अस्पताल सी1 श्रेणी में आते हैं। ऐसी इमारतों में अग्नि सुरक्षा के लिए विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर व्यवस्था होनी चाहिए।
- अस्पतालों में कानून के अनुसार फायर ब्रिगेड के इस्तेमाल के लिए फायर लिफ्ट, फायर अलार्म, हर मंजिल पर स्मोक डिटेक्टर, अग्निशामक यंत्र और फायर हाइड्रेंट होने चाहिए। बेसमेंट स्पेस में स्मोक आउटलेट और एयर इनलेट प्रदान किए जाने चाहिए, और बहुमंजिला इमारतों में वेंटिलेटिंग डक्ट लगाए जाने चाहिए।
- बिजली की फिटिंग और वायरिंग को अलग-अलग डक्ट में लगाया जाना चाहिए, जिन्हें गैर-ज्वलनशील सामग्री से सील किया गया हो।
पालन ही नहीं होता
राष्ट्रीय भवन संहिता व्यापक और विस्तृत तो है लेकिन ज्यादातर अस्पताल इसका पालन ही नहीं करते हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि सुरक्षा मानदंडों के प्रति उदासीनता और अज्ञानता ही आग दुर्घटनाओं का कारण बनती है।
- 2019 में केंद्र सरकार ने अग्नि सुरक्षा पर एक मौजूदा मॉडल बिल को संशोधित किया। जिसका इस्तेमाल कई राज्यों ने राज्य-स्तरीय कानूनों के लिए एक गाइडलाइन के रूप में किया गया है।
अग्निशमन सेवाएँ राज्य सूची में आती हैं, और मॉडल बिल राज्यों के लिए एक सलाहकार दस्तावेज़ के रूप में काम करने के लिए तैयार किया गया था। संशोधित मॉडल बिल में कई नए सुझाए गए प्रावधान शामिल थे – उदाहरण के लिए, 15 मीटर से अधिक ऊँची इमारतों में ऑटोमैटिक स्प्रिंकलर सिस्टम, फायर अलार्म और अग्निशामक यंत्र लगे होने चाहिए, और अग्नि सुरक्षा की निगरानी के लिए एक समर्पित अधिकारी होना चाहिए।
बताया जाता है कि अभी तक किसी भी राज्य ने मॉडल बिल के प्रावधानों को अपने कानूनों में पूरी तरह से नहीं अपनाया है।
Hospital Fire : अस्पतालों में ज्यादा सावधानी जरूरी
अग्नि सुरक्षा के मामले में अस्पतालों को विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है। आईसीयू, वातानुकूलित वार्ड, ऑपरेशन थिएटर, बाल चिकित्सा या नवजात आईसीयू, एक्स-रे और डायलिसिस कमरों में भारी उपकरणों की मौजूदगी के चलते आग लगने के लिए अत्यधिक खतरे में होते हैं।
- अस्पताल में आग विशेष रूप से खतरनाक होती है क्योंकि मरीज किसी इमरजेंसी स्थिति में तुरन्त प्रतिक्रिया करने के लिए शारीरिक रूप से फिट नहीं होते, अस्पताल में कनसंट्रेटेड ऑक्सीजन होती है, एसी होता है, प्लास्टिक – रबर – कपड़े जैसे ज्वलनशील आइटम होते हैं।
- ऑक्सीजन युक्त वातावरण आग को और भड़काता है। और इसी वजह से अस्पतालों को वार्डों में दीवारों या छतों के लिए प्लास्टर ऑफ पेरिस जैसी ज्वलनशील सामग्री का उपयोग नहीं करना चाहिए।
- दीवार की सामग्री कम से कम दो घंटे तक आग का प्रतिरोध करने में सक्षम होनी चाहिए। अस्पताल के लिए अपने बिजली के लोड का मैनेजमेंट करना भी महत्वपूर्ण है।