Sonbhadra
रेणुकूट। हिण्डाल्को रामलीला परिषद् द्वारा हिण्डाल्को रामलीला मैदान पर आयोजित हो रही रामलीला के छठे दिन सीता हरण, शबरी भक्ति, राम-सुग्रीव मित्रता, बाली वध, सीताजी की खोज और लंका दहन आदि लीलाओं का बहुत सजीव मंचन रामलीला के कलाकारों द्वारा किया गया। (Sonbhadra) लीलाओं में लक्ष्मणजी द्वारा शूर्पनखा की नाक काट लेने पर शूर्पनखा अपने भाई रावण के दरबार पहुंच कर सीताजी की सुन्दर रूप का बखान करते हुए उनके हरण के लिए उकसाती है तब रावण अपने मामा मारीच के साथ वन में पहुंचते है और मारीच स्वर्ण मृग बन कर सीताजी को रिझाते है और सीताजी की जिद पर श्रीराम मृग पकड़ने उसके पीछे दौड़ते है। मारीच अपने मायाजाल से लक्ष्मण को श्रीराम की मदद को विवश कर देते और सीताजी के आग्रह पर लक्ष्मण रेखा खींच कर श्रीराम की मदद को चल देते है। (Sonbhadra) मौका पाकर साधू वेश में रावण सीताजी का हरण कर लेते है और आकाश मार्ग से लंका की ओर ले चलते है। (Sonbhadra) रास्ते में जटायू उन्हें भरसक रोकने का प्रयास करते है और रावण के प्रहार से मरनासन्न होकर धरती पर गिर जाते है। उधर कुटिया में लौटकर सीताजी को न पाकर दोनो भाई उन्हें ढूढ़ने निकलते है तब रास्ते में जटायू से उन्हें रावण द्वारा सीताजी के हरण की जानकारी मिलती है।
आगे चलकर श्रीरामजी सुग्रीव से मिलते है और बाली-सुग्रीव युद्ध में बाली का वध करके सुग्रीव को राजगद्दी सौंप देते है। सुग्रीव व श्रीराम की मित्रता होती है और पूरी वानर सेना, सुसेन, हनुमानजी व सुग्रीव श्रीराम व लक्ष्मण के साथ सीताजी को लंका से लाने के लिए निकल पड़ते है। (Sonbhadra) हनुमानजी सात समुंदर पार करके लंका पहुंच कर अशोक वाटिका में सीता माता से मिलकर उन्हें श्रीराम का संदेश देते है जिसे पाकर सीताजी भावुक हो उठती है। अंत में हनुमानजी विकराल रूप धारण करके पूरे लंका को तहस-नहस करते हुए आग लगा देते है और इसी के साथ छठे दिन की लीलाओं का समापन होता है।
इससे पूर्व मुख्य अतिथि, हिण्डाल्को के वरिष्ठ अधिकारी श्री जेपी नायक, श्री जयेश पवार, श्री हंसराज सिंह व अन्य अधिकारी एवं कर्मचारियों ने गणेश पूजन कर छठें दिन की लीलाओं का शुभारंभ किया।