Bihar ke Mahakand: बिहार में 1977 के बेलछी हत्याकांड दलितों के खिलाफ उस दौर की सबसे भयानक घटना कही जाती है। इस घटना का असर ऐसा था कि जनता सरकार देखते ही देखते अलोकप्रिय हो गई और इंदिरा गांधी के हाथी पर सवारी के एक कदम ने राष्ट्रीय राजनीति में उनकी वापसी कराई। 17 साल बाद राज्य में एक बार फिर इसी तरह का मामला सामने आया। ये पूरा घटनाक्रम और ज्यादा डरावना था। यह हत्याकांड भोजपुर जिले के बथानी टोला में हुआ था।
आखिर बथानी टोला हत्याकांड क्या था, इस हत्याकांड की पृष्ठभूमि क्या थी? बथानी टोला नरसंहार में किसने-किसे निशाना बनाया? इस मामले में कोर्ट में कब क्या हुआ? ‘बिहार के महाकांड’ सीरीज की तीसरी कड़ी में आज इसी बथानी टोला हत्याकांड की कहानी…
Bihar ke Mahakand: क्या है बथानी टोला हत्याकांड की पृष्ठभूमि?
अरुण सिन्हा की 2011 में आई किताब ‘नीतीश कुमार एंड द राइज ऑफ बिहार’ के मुताबिक, 1970 के दशक में बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में जब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) और समरस समाज पार्टी (एसएसपी) ने पहुंच बनाई तो यहां का सामाजिक ताना-बाना धीरे-धीरे बदलने लगा। इन पार्टियों के नेतृत्व में 1970 के मध्य तक मजदूरों के तबके ने उच्च जातियों से आने वाले जमींदारों और जमीन पर कब्जा करने वालों के खिलाफ आवाज बुलंद करनी शुरू कर दी। (Bihar ke Mahakandv) इसके चलते एक खूनी संघर्ष की शुरुआत हुई। इसी चिंगारी के चलते 1977 में बेलछी हत्याकांड हुआ, जिसमें गांव में घुसकर कई दलितों को मौत के घाट उतार दिया गया था।

1996 के बथानी टोला नरसंहार से पहले का घटनाक्रम भी काफी हद तक 1970 के दशक जैसा ही था। दरअसल, हुआ कुछ यूं कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) यानी भाकपा-माले ने सैकड़ों की संख्या में मजदूरों को एकजुट किया और मांग उठाई कि उच्च जाति के बड़ी जोत वाले किसान और जमींदार उन्हें कम से कम न्यूनतम आय तो मुहैया कराएं ही। (Bihar ke Mahakand) उस दौरान खेतीहर मजदूर प्रतिदिन 25 रुपये या दो किलोग्राम चावल के लिए काम करते थे। महिलाओं और भी कम मेहनताना मिलता था।
उस दौर में सरकार ने मजदूरों के लिए न्यूनतम मेहनताना 32 रुपये तय किया था। (Bihar ke Mahakand) हालांकि, जमींदारों और बड़े किसानों ने मुख्यतः दलित और पिछड़े समाज से आने वाले इन मजदूरों की मेहनताना बढ़ाने की मांग को अनसुना कर दिया। भाकपा-माले ने पहले ही ऐसे किसानों को एकजुट करना जारी रखा। मजदूर एकजुट हुए और काम से इनकार करने लगे। यह बात उच्च जाति के जमींदारों को पसंद नहीं आई और आगे जो कुछ हुआ, वही बथानी टोला नरसंहार के तौर पर जाना गया।
बथानी टोला का जातीय गणित कैसा था?
बिहार के भोजपुर जिले में एक गांव है। नाम है बड़की खरांव, जहां 1996 के करीब 400 घर हुआ करते थे। (Bihar ke Mahakand) यहां बड़ी संख्या में भूमिहार और राजपूत जैसी उच्च जातियां रही हैं और जमीन का मालिकाना हक भी इन्हीं के पास है। दोनों जाति के लोगों के तब गांव में 60-60 घर हुआ करते थे।
गांव में राजपूतों और भूमिहारों की संख्या दलितों के मुकाबले कम थी। इसके बावजूद इन उच्च जातियों का पूरे क्षेत्र में वर्चस्व रहा। राजपूत-भूमिहारों के अलावा मुस्लिम (35 घर), यादव (25 घर), कोइरी (20 घर) भी गांव का हिस्सा रहे। इस गांव के राजपूतों और भूमिहारों के पास जमीन का एक बड़ा हिस्सा था।
नरसंहार की चिंगारी किस घटना से भड़की?
फरवरी 1996
इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली में बेला भाटिया के लेख- ‘जस्टिस नॉट वेनजेएंस: द बथानी टोला मसैकर एंड रणवीर सेना इन बिहार’ में पीड़ितों के हवाले बताया गया कि पहले उनके भूमिहारों और राजपूतों से संबंध ठीक थे। लेकिन 1994 में जब मजदूरों ने न्यूनतम वेतन की मांग करते हुए पूरी तरह काम ठप करने का एलान कर दिया तो बड़े किसानों और जमींदारों का गुस्सा भड़क उठा। प्रशासन ने किसी तरह इस टकराव को कम कराया। लेकिन तब तक तनाव के बीज बोए जा चुके थे।
आरोप लगा कि जमींदारों ने करीब 25-30 एकड़ जमीन पर कब्जा कर लिया है। इसमें इमामबाड़ा और करबला से जुड़ी 1.5 एकड़ जमीन भी शामिल थी। बताया जाता है कि इसके चलते जातीय तनाव में धार्मिक कोण भी जुड़ गया, क्योंकि इलाके के मुस्लिमों ने इसका विरोध किया। इस पूरे घटनाक्रम में आग में घी का काम किया फरवरी 1996 में भाकपा-माले के करबला मुक्ति मार्च ने, जिसमें बड़की खरांव गांव के उच्च जाति के दो लोगों की मौत हो गई। बताया जाता है कि इस घटना के बाद से ही पूरे गांव में माहौल तनावपूर्ण हो गया।
बथानी टोला में कैसे हुआ नरसंहार?
मोहम्मद सुल्तान का शव लाने गया नईमुद्दीन जमींदारों की आंख में चुभने लगा था। इसके बाद जमींदारों ने रणवीर सेना से संपर्क किया और बथानी टोला पर हमले की तैयारी हुई। (Bihar ke Mahakand) उच्च जातियों के गुस्से की भनक बथानी टोला के लोगों को लग चुकी थी और इसी वजह से जिला प्रशासन को रणवीर सेना की साजिश को लेकर जानकारी दी गई। पुलिस ने कुछ चौकियां भी लगाईं।
इसके बावजूद 11 जुलाई 1996 की दोपहर को रणवीर सेना के कई लोग बथानी टोला गांव के आसपास इकट्ठा हुए। इन लोगों का एक ही लक्ष्य था, 29 अप्रैल से बथानी टोला में छिपे लोगों को खदेड़ना। अरविंद सिन्हा और इंदु सिन्हा की नवंबर 1996 की जर्नल रिपोर्ट के मुताबिक, रणवीर सेना के करीब 150-200 लोग आधुनिक हथियारों के साथ गांव के बाहर जुटे थे। इन लोगों ने लगातार गोलियां दागते हुए पहले गांव के अंदर एंट्री ली। इसके बाद लगातार फायरिंग कर महिलाओं और बच्चों समेत 21 दलितों-मुस्लिमों को मार गिराया। मृतकों में एक दो महीने का बच्चे से लेकर गर्भवती महिलाएं तक शामिल थीं।
बताया जाता है कि बथानी टोला के लोग पारंपरिक हथियारों के जरिए रणवीर सेना का मुकाबला करने उतरे, लेकिन बंदूकों के सामने उनकी एक न चली। ऐसे में अधिकतर लोग गांव छोड़कर खेतों की तरफ भागे। (Bihar ke Mahakand) इस दौरान रणवीर सेना के लोगों ने उनकी झोपड़ियों को आग के हवाले कर दिया। यह उत्पात करीब एक घंटे तक चला। लोगों का आरोप है कि साहर पुलिस स्टेशन की बथानी टोला से दूरी सिर्फ 7 किलोमीटर ही थी, लेकिन पुलिस दस्ता शाम को पहुंचा।
…तो क्या नक्सलवाद भी था बथानी टोला नरसंहार का जिम्मेदार?
बथानी टोला नरसंहार को रणवीर सेना और भाकपा-माले के बीच संघर्ष के तौर पर भी देखा जाता है। जमींदार वर्ग भाकपा-माले के कार्यकर्ताओं और इसके जमीन को बड़े किसानों से छीनने के तरीके को नक्सल आंदोलन करार देते थे। ह्यूमन राइट्स वॉच के मुताबिक, पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी में 1968 में शुरू हुआ नक्सल आंदोलन बिहार तक 1970 के दशक में फैल चुका था। (Bihar ke Mahakand) भाकपा-माले इसी विचारधारा के तहत जमींदारों से जमीन छीनने में जुटी थी। इतना ही नहीं नक्सल संगठन आम लोगों पर हमले में भी शामिल रहे। हालांकि, 1970 के दशक के मध्य में इस संगठन ने जातीय व्यवस्था को निशाना बनाना शुरू किया और अपने नक्सल आंदोलन में दलितों और पिछड़ी जाति के लोगों को शामिल करना शुरू कर दिया। बताया जाता है कि एक समय बिहार के 54 जिलों में से 36 जिलों में नक्सल अभियान जारी थे।
बताया जाता है कि उच्च जातियों ने इसी समस्या से निपटने के लिए रणवीर सेना बनाई और इसके बाद बिहार लगातार भाकपा-माले बनाम रणवीर सेना की जंग में घिरा रहा। जुलाई 2000 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक सवाल के जवाब में जानकारी दी थी कि रणवीर सेना एक जातिगत समूह है। इसका गठन जनवरी 1995 में नक्सलियों और वामपंथी चरमपंथियों से मुकाबले के लिए मध्य बिहार में हुआ था। (Bihar ke Mahakand) अपने जवाब में गृह मंत्रालय ने बताया था कि इस समूह ने 1997 में 41 हिंसक घटनाओं में 103 लोगों की हत्या की। इसी तरह इस समहू द्वारा 1998 में 23 हिंसक वारदातों में 15 लोगों की, 1999 में 11 हिंसक घटनाओं में 46 लोगों और जून 2000 तक 11 हिंसक घटनाओं में 47 लोगों की हत्या की थी। इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली की एक रिपोर्ट के मुताबिक 11 जुलाई को बथानी टोला में हुई घटना ने पूरे बिहार को हिला कर रख दिया।