Caste Census Update: जातियों की गिनती का ऐलान हुआ है। मसला काफी अरसे से चला आ रहा था, तमाम नेता पार्टियां इसी मसले का राजनीतिक दानापानी इस्तेमाल कर रहे थे। खैर, अब राष्ट्रीय स्तर पर इसका ऐलान हो ही गया। होना तो था ही, बस कब होता यही इंतजार था। (Caste Census Update) देश में व्यापक गिनती के साथ जाति भी पूछी जाएगी। सन 31 के बाद अब ऐसा होगा, करीब 100 साल बाद। गिनती में क्या निकलेगा, अटकलें अपार हैं, अनुमानित आंकड़े अभी से पेश हैं, उम्मीदें और आशंकाएं भी भरपूर हैं। सब नज़रिए नज़रिए की बात है।
हम और हमारा देश – दोनों ही अनोखे हैं। शायद ही किसी अन्य समाज या देश में इतनी विविधता है। सबसे बड़ी बात है जाति की विविधता। (Caste Census Update) ये ठीक वैसे ही है जैसे अफ्रीकी देशों के कबीले। यूँ तो जाति व्यवस्था कई देशों में विभिन्न रूपों में मौजूद है, लेकिन भारत की टक्कर का कोई नहीं है। कहने को जाति-जैसी व्यवस्था वाले अन्य देशों में नेपाल, श्रीलंका और कुछ अफ्रीकी देश शामिल हैं।
हैरानी की बात ये है कि भारतीय समाज में हजारों साल से चली आ रही जाति व्यवस्था के महत्व के बावजूद, इस बात पर कोई आम सहमति नहीं है कि आज किस जाति वर्ग में कितने प्रतिशत भारतीय शामिल हैं। (Caste Census Update) जो कुछ है, वो सिर्फ अटकल है। मीडिया की भी क्या कहें, एक वेबसाइट ने कहा दिया कि भारत में 46 लाख जातियां हैं। अब कौन तर्क करे कि इस हिसाब से तो 150 करोड़ के देश में हर जाति के हिस्से में मात्र 32 लोग ही आएंगे।
ऐसे में प्यू रिसर्च सेंटर का आंकड़ा सही लगता है कि भारत में 3 हजार जातियां और 25 से 30 हजार उपजातियां हैं। (Caste Census Update) ये इस तरह से भी सही लगता है कि देश में हर राज्य की अपनी अपनी जाति लिस्ट है और उसका आंकड़ा भी इसी के आसपास है। सामाजिक – आर्थिक सर्वे भी ऐसा ही बताते हैं।
खैर, जातियों में बंटे समाज के लिए गिनती का आंकड़ा दो-चार साल में सामने आ ही जायेगा। आंकड़ा आने पर आगे क्या होगा? किस काम में लाया जाएगा जाति का आंकड़ा? क्या होगा उस आंकड़े का? इन सवालों पर न कोई चर्चा है और न कोई जिज्ञासा ही नजर आती है। चर्चा हो भी तो घूम फिर के बात वही कोटा-रिजर्वेशन पर टिक जाती है। लेकिन क्या जातिगत आंकड़े से सिर्फ कोटा ही तय करना है? अगर ऐसा है तो कोटा बढ़ेगा या घटेगा या कुछ और में बंटेगा। उससे हासिल क्या होगा, सवाल ये भी है। (Caste Census Update) जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी- यह हिस्सेदारी होगी किसमें? विकास में, फ्री की सरकारी योजनाओं में, आरक्षण में विधानसभा,संसद और नगर निगम तथा पंचायत चुना में सीटों के आरक्षण में। पर ये कैसे लागू होगा? जब हजारों जातियां निकल कर आएंगी तो नौकरी/पढ़ाई का केक आखिर कितने हिस्सों में कटेगा? कटेगा भी तो किसको कितना मिलेगा । कम ज़्यादा मिलने की लॉग डॉट तो बनेगी ही। जिनको केक नहीं मिलना है, उन्हें अलग किस आधार पर करेंगे?