Lucknow BJP Meeting : उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के विधि विश्वविद्यालय के अंबेडकर सभागार में कल भाजपा कार्यसमिति की बैठक हुई। बैठक में भाजपा के 3000 सदस्य शामिल हुए। इनमें पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित तमाम वरिष्ठ नेता, मंत्री, पदाधिकारी और सदस्य शामिल हुए। अमूमन कार्यसमिति की बैठक में पार्टियां अपने खराब प्रदर्शन, आने वाले चुनाव और पार्टी को संगठन को मजबूत करने के विषयों पर चर्चा करती है।
भाजपा की बैठक से लोगों को यही उम्मीद थी। हालांकि ऐसा हुआ नहीं। पार्टी अपने मुद्दों पर चर्चा करने के बजाय विपक्ष के सेट किए गए नैरेटिव का काट ढूंढने में लगी रही। राजनीतिक विचारकों के अनुसार पूरी बैठक एक राजनीतिक रैली की तरह नजर आई। पार्टी आत्ममंथन से ज्यादा दूसरों पर चिंतन करती दिखी।
Lucknow BJP Meeting : गौण हुए जरूरी मुद्दे
भाजपा की बैठक में पार्टी की चर्चा गौण दिखी। एक दिवसीय कार्यसमिति की बैठक में पार्टी वैसे भी ज्यादा चर्चा नहीं कर सकती थी। वो भी तब जब मंच पर तमाम वरिष्ठ नेता और वक्ता हों। पार्टी की बैठक शुरु से लेकर अंत तक एक राजनीतिक रैली की तरह नजर आई। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा हों या मुख्यमंत्री योगी सभी ने भाजपा की बैठक में विपक्ष पर चर्चा की।
भाजपा उत्तर प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी पार्टी को नसीहत देने के बजाय अखिलेश यादव को कांग्रेस से दूर रहने की नसीहत देते नजर आए। किसी नेता ने पार्टी के लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन पर कोई चर्चा करने की कोशिश भी नहीं की। तमाम सवालों से कन्नी काट लिया गया। पार्टी ने आत्ममंथन जैसा कुछ किया ही नहीं। जबकि कार्यसमिति की बैठक में यही किया जाना चाहिए था।
Lucknow BJP Meeting : विपक्ष के चंगुल में भाजपा !
अब तक खुद नैरेटिव सेट कर राजनीति को दिशा देने वाली पार्टी विपक्ष के मुद्दों में फंसती जा रही है। भाजपा विपक्ष के मुद्दों में इस कदर उलझी नजर आती है कि अपने संगठन पर कोई चर्चा ही नहीं कर पाती। पार्टी से जुड़े तमाम महत्तवपूर्ण सवालों को छोड़ कर विपक्ष पर चर्चा किया जा रहा है। बैठक में राजनीतिक प्रस्ताव पास किए गए। प्रस्ताव में भाजपा की हार का ठीकरा विपक्ष पर फोड़ा गया।
प्रस्ताव में कहा गया कि विपक्ष के झूठे प्रचार के कारण चुनाव में सफलता नहीं मिली। विपक्ष के आरक्षण, महिलाओं को पैसे, संविधान बदलाव जैसे विषयों को हार का कारण बताया गया। प्रस्ताव में राहुल गांधी को हिंदू विरोध करार दिया गया। बताया गया कि बीजेपी ओबीसी और एससी के आरक्षण को लेकर प्रतिबद्ध है। साथ ही ज्योतिबा फुले को पथ प्रदर्शक के रूप में दर्शाया गया। इन प्रस्तावों में भाजपा ने कुछ नया न करते हुए वही पुरानी बातें दोहराई हैं। एक तरह से विपक्ष के मुद्दों का जवाब भर दिया गया है।
Lucknow BJP Meeting : खराब प्रदर्शन पर परदा डालने की कोशिश
प्रस्ताव के पहले दो पन्नों को देखें तो प्रधानमंत्री मोदी का धन्यवाद दिया गया है। पार्टी ने कोई नई रणनीति न बनाते हुए शायद एक बार फिर पीएम मोदी के चेहरे को आगे कर पार्टी चलाने का निर्णय कर लिया है। हालांकि हाल ही में हुए महाराष्ट्र के चुनावी बैठक में यह कहा गया था कि पार्टी में किसी एक चेहरे को प्रमुखता न दी जाए।
उम्मीद की जा रही थी कि पार्टी भविष्य में मजबूती से आगे बढ़ने के लिए ठोस कार्य योजना बनाएगी। मगर बैठक में आंकड़ों के मकड़जाल से यूपी में खराब प्रदर्शन पर परदा डालने की कोशिश की गई। 2027 विधानसभा चुनाव के लिए कोई ठोस योजना नहीं बनाई गई। एक बार फिर घिसे-पिटे अंदाज में कार्यकर्ताओं को जनता के बीच जाने का आदेश दे दिया गया। उद्धाटन से लेकर समापन तक यही रंग दिखा। उन बातों की चर्चा तो दूर जिक्र भी नहीं किया गया जिनसे लोकसभा चुनाव में नुकसान हुआ था।
Lucknow BJP Meeting : सवालों से कन्नी काटती भाजपा
भाजपा ने कार्यसमिति की बैठक में तमाम संगठनात्मक सावलों को दरकिनार कर दिया। पार्टी में भितराघात, पार्टी के परंपरागत वोटरों का दूर होना, विवादित बयानों सहित ऐसे कई मुद्दे हैं जिनपर चर्चा की उम्मीद थी। इतना ही नहीं पार्टी ने अपने जमीनी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए भी कोई प्रयास नहीं किया। उनसे एक बार फिर हार पर माथा न पीटकर तीसरी बार सरकार बनने और सरकारी योजनाओं का प्रचार करने को कहा गया।
- भितराघात- भाजपा में बढ़ रहे भितराघात पर कोई चर्चा नहीं हुई। लोकसभा चुनाव के दौरान तमाम नेताओं ने पार्टी का विरोध किया। हाल ही में बदलापुर विधायक का भी वीडियो वायरल हुआ। नेता और विधायक ही नहीं खुद उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य कैबिनेट बैठक में नहीं जा रहे हैं। कल उन्होंने ये कह कर साफ भी कर दिया कि संगठन सरकार से बड़ा है। उनका इशारा सीएम योगी की तरफ माना जा रहा है। इससे पार्टी को नुकसान हुआ मगर बैठक में कोई चर्चा नहीं हुई।
- कमजोर जनाधार– भाजपा की जमीनी पकड़ हर दिन कमजोरी होती नजर आ रही है। लोगों का पार्टी से विश्वास कम हो रहा है। मगर पार्टी ने बैठक में खोता जनाधार वापस पाने की कोई चर्चा नहीं की। बल्कि विपक्ष के मुद्दों को झुठलाने में ज्यादा वक्त दिया गया।
- छिटकते मतदाता- उत्तर प्रदेश में भाजपा का कोर वोटर मानी जाने वाली जातियों ने भी लोकसभा चुनाव में पार्टी को वोट नहीं दिया। भाजपा अपने वोटरों को छिटकने से बचा नहीं पाई। इस मुद्दे को भी पार्टी ने प्राथमिकता नहीं दी। इसके बजाय प्रस्ताव में राहुल गांधी को हिंदू विरोधी बताने पर जोर दिया गया।
- विवादित बयान- लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के कई नेताओं ने 400 सीटें पार होने पर संविधान बदलने या संसोधित करने का दावा किया था। इसके अलावा भी ऐसे कई बयान दिए गए जिससे पार्टी को नुकसान हुआ। उन बयानों को अब तक पार्टी डिफेंड कर रही है। उन पर भी कोई चर्चा नहीं की गई।
- निराश कार्यकर्ता- भाजपा के निराश कार्यकर्ता लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन का बड़ा कारण माने जा रहे हैं। पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए कोई नई योजना नहीं बनाई। उन्हें फिर एक बार जनता के बीच जाकर सरकार का प्रचार करने को कह दिया गया।
ऐसे ही तमाम जरूरी मुद्दों को पार्टी ने गौण कर दिया। पार्टी ने अपने संगठन को मजबूत करने के बजाय सारा ध्यान विपक्ष पर लगाया। अब देखने वाली बात होगी कि इस बैठक से पार्टी को भविष्य में कितना फायदा होता है।