Delhi News : आज देश की 88 सीटों पर लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान हो रहा है। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल शराब घोटाला मामले में तिहाड़ जेल में बंद हैं। फिलहाल केजरीवाल इस चुनाव में किस सीट से चुनाव लड़ेंगे या फिर लड़ेंगे भी या नहीं, ये स्पष्ट नहीं है, लेकिन ये जरूर पहले से तय है कि जेल में रहते उनके पास वोट देने का अधिकार नहीं है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के क्राइम इन इंडिया 2022 की रिपोर्ट के आधार पर देश में ऐसे 5 लाख से अधिक लोग हैं जो इस लोकसभा चुनाव में वोटिंग नहीं कर सकेंगे क्योंकि वे किसी न किसी मामले में जेल की सजा काट रहे हैं।
Delhi News : 2013 में पहली बार सामने आया था मामला
![Delhi News : CM केजरीवाल जेल से चुनाव तो लड़ सकते हैं, लेकिन वोटिंग का अधिकार नहीं, जानिए क्या कहता है कानून ? 2 image 272](https://india24x7livetv.com/wp-content/uploads/2024/04/image-272.jpeg)
आज से करीब डेढ़ दशक पहले पटना हाई कोर्ट में एक ऐसा मामला सामने आया था, जिसमें जेल में बंद एक कैदी ने चुनाव लड़ने की मंशा जताई। अदालत ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि जब कैदियों को वोट देने का हक नहीं है, तो चुनाव लड़ने जैसा अधिकार नहीं दिया जा सकता है। हाईकोर्ट के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले को मंजूरी दे दी। लेकिन बाद में तत्कालीन यूपीए सरकार ने कानून में बदलाव किया और जेल में बंद कैदियों को चुनाव लड़ने की इजाजत दिलाई। ये मामला साल 2013 का है। हालांकि, जेल में बंद कैदियों के पास वोटिंग राइट अब भी नहीं है।
Delhi News : कानून का उल्लंघन करने वाले को कानूनी अधिकार नहीं
![Delhi News : CM केजरीवाल जेल से चुनाव तो लड़ सकते हैं, लेकिन वोटिंग का अधिकार नहीं, जानिए क्या कहता है कानून ? 3 image 274](https://india24x7livetv.com/wp-content/uploads/2024/04/image-274.jpeg)
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 62(5) के तहत किसी भी मामले में जेल की सजा काट रहे कोई भी व्यक्ति मताधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता। फिर चाहे वो हिरासत में हो या जेल में सजा काट रहा हो। दरअसल, मताधिकार एक कानूनी अधिकार है। अगर कोई व्यक्ति कानून का उल्लंघन करता है तो उसका मताधिकार अपने-आप निरस्त हो जाता है। कानून के अनुसार, दोषी के अलावा जिनपर ट्रायल चल रहा हो, वे भी मतदान नहीं कर सकते।
बंदियों को मताधिकार से वंचित रखने के इतिहास पर नजर डालें तो यह अंग्रेजी जब्ती अधिनियम 1870 से दिखता है। इस दौरान राजद्रोह या गुंडागर्दी के दोषी लोगों को मतदान के लिए अयोग्य ठहराते हुए उनसे वोट का मताधिकार छीन लिया जाता था। इसके लिए दलीलें दी गई कि जो व्यक्ति इतना गंभीर अपराध कर रहा है, उसे किसी भी तरह का कोई वोटिंग राइट नहीं मिलना चाहिए।
![Delhi News : CM केजरीवाल जेल से चुनाव तो लड़ सकते हैं, लेकिन वोटिंग का अधिकार नहीं, जानिए क्या कहता है कानून ? 4 image 275](https://india24x7livetv.com/wp-content/uploads/2024/04/image-275.jpeg)
Delhi News : प्रिवेंटिव डिटेंशन वालों को भी छूट
गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 में भी यही कानून लागू हो गया। इसके तहत कुछ खास तरह के अपराधों में जेल की सजा काट रहे लोगों को वोट देने से रोक दिया गया। हालांकि 1951 के जन प्रतिनिधित्व अधिनियम ने इस कानून को नए सिरे से देखा। और इस प्रावधान में कुछ छूट दी गई। इस प्रावधान में उन्हें छूट दी गई जो प्रिवेंटिव डिटेंशन में हों। मतलब किसी भी वजह से सरकार को शक हो, इसके बाहर रहने से उपद्रव हो सकता है और इसे ही टालने के लिए उसे नजरबंद कर दिया गया हो, ऐसे लोग वोट डाल सकते हैं। इसके लिए पुलिस उसको सुरक्षा घेरे में पोलिंग बूथ तक ले जाएगी। या फिर उस व्यक्ति को औपचारिक तरीके से स्थानीय प्रशासन को यह जानकारी देनी होगी कि वो इतने समय पर इस बूथ पर वोटिंग के लिए जा रहा है ताकि उनपर नजर रखी जा सके।
Delhi News : 2013 में प्रतिनिधित्व अधिनियम में किया गया संशोधन
कई बार कोर्ट में इस बात को लेकर बहस हुई कि अगर दोषियों या आरोपियों के पास वोटिंग का अधिकार नहीं है तो इलेक्शन लड़ने का भी अधिकार नहीं होना चाहिए। लेकिन, अंत में यह माना गया कि कई बार ऐसा होता है कि लोग राजनैतिक लड़ाई की वजह से किसी को अंदर करवा देते हैं।
ऐसे में जेल होने की वजह से एक काबिल शख्स चुनाव लड़ने से डिसक्वालिफाई हो जाएगा। ये सही नहीं है। यही तर्क के आधार पर साल 2013 में प्रतिनिधित्व अधिनियम के सेक्शन 62(5) में संशोधन हुआ। इसमें जेल में रहते हुए इलेक्शन में दावेदारी की छूट मिल गई। वे चुनाव में कैंडिडेट हो सकते हैं, अपने लोगों के जरिए चुनावी प्रचार भी करवा सकते हैं, बस वोट नहीं दे सकते। आरोपमुक्त होने या सजा पूरी होने के बाद ही कोई कैदी मताधिकार का इस्तेमाल कर सकता है।