Pakistan wants Noble Prize for Trump: इस्लामी एकता के नाम पर भाषण झाड़ने वाला पाकिस्तान, अब एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहां उसने न केवल अपने तथाकथित मुस्लिम “भाई” ईरान को धोखा दिया, बल्कि पूरी दुनिया को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर यह मुल्क किसके इशारे पर नाचता है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप—जिन्होंने हाल ही में ईरान पर बंकर बस्टर बम गिरवाए, हजारों मुसलमानों की जान खतरे में डाली और मध्य-पूर्व को जंग के कगार तक पहुंचा दिया—अब वही ट्रंप पाकिस्तान की नजरों में नोबेल शांति पुरस्कार के हकदार हैं! और यह सब कुछ तब हो रहा है जब इस्लामी दुनिया में कोहराम मचा हुआ है।

Pakistan wants Noble Prize for Trump: ईरान पर बम, फिर भी ट्रंप के गुणगान!
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने एक इंटरव्यू में खुलकर कहा कि उनकी सरकार ट्रंप को 2026 का नोबेल शांति पुरस्कार दिलवाने की मांग पर और भी ज्यादा मजबूती से कायम है। उनका दावा है कि ट्रंप ने दो युद्धविराम कराए हैं—एक इज़राइल और ईरान के बीच और दूसरा भारत और पाकिस्तान के बीच। (Pakistan wants Noble Prize for Trump) ये वही ट्रंप हैं जिनकी सेना ने हाल ही में ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर बंकर बस्टर बम गिराए, जिससे पूरे मध्य-पूर्व में तबाही मच गई। (Pakistan wants Noble Prize for Trump) पाकिस्तान ने इन हमलों को लेकर एक शब्द भी विरोध में नहीं कहा, बल्कि इसके उलट—अब ट्रंप की पीठ थपथपाई जा रही है और उन्हें “शांति का मसीहा” बताया जा रहा है। यह वही ईरान है जिसे पाकिस्तान ने वर्षों तक “मुस्लिम भाई” बताया था। आज वही भाई अगर ट्रंप के हाथों तबाह हो रहा है, तो पाकिस्तान तालियां बजा रहा है।
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वॉशिंगटन लंच डिप्लोमेसी: किस सौदे पर हुई मुहर?
ईरान पर अमेरिकी हमले से ठीक पहले पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने वाइट हाउस में ट्रंप से गुप्त मुलाकात की थी। करीब दो घंटे चले लंच में जो बातें हुईं, वे अब धीरे-धीरे सामने आ रही हैं। (Pakistan wants Noble Prize for Trump) सूत्रों के मुताबिक, पाकिस्तान ने अमेरिका को अपने सैन्य अड्डे देने का ऑफर किया ताकि ईरान पर हमलों में लॉजिस्टिक मदद दी जा सके। यह सौदा सिर्फ ईरान तक सीमित नहीं था—इस डील में ट्रंप से कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता का भी अनुरोध किया गया। भारत ने इस प्रस्ताव को साफ-साफ खारिज कर दिया है, लेकिन पाकिस्तान को इसकी परवाह नहीं। वह ट्रंप की नज़रों में चढ़ने के लिए हर अंतरराष्ट्रीय मर्यादा तोड़ने को तैयार है—भले ही इसका मतलब अपने मुस्लिम पड़ोसी की पीठ में छुरा घोंपना ही क्यों न हो!
सीजफायर या साजिश?
ईरान और इज़राइल के बीच 12 दिन तक चले संघर्ष में ईरान के 200 नागरिकों की मौत हुई जबकि इज़राइल ने 30 जवान खोए। (Pakistan wants Noble Prize for Trump) सीजफायर कतर की मध्यस्थता से हुआ, लेकिन उसका सारा क्रेडिट पाकिस्तान ने ट्रंप को दे दिया। अब उसी आधार पर पाकिस्तान ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार दिलाने की मांग कर रहा है। यानी बम गिराओ, लोग मारो, और फिर सीजफायर कराके शांति दूत बन जाओ!—इस विचित्र नैतिकता को ही आज पाकिस्तान बढ़ावा दे रहा है।
ईरान का फूटा गुस्सा: ‘धोखा है पाकिस्तान!’
पाकिस्तान की इस हरकत से ईरान में उबाल है। तेहरान में स्थित पाकिस्तानी दूतावास के बाहर ईरानी प्रदर्शनकारियों ने “दगाबाज पाकिस्तान” के नारे लगाए। (Pakistan wants Noble Prize for Trump) ईरानी राजदूत ने इस बात पर तीखी प्रतिक्रिया दी है कि कैसे एक मुस्लिम देश ने न केवल अमेरिका को सैन्य मदद की पेशकश की, बल्कि उसे एक ऐसे पुरस्कार के लिए नामित करने की हिमाकत की जिसने उनके देश को खून में डुबो दिया।
पाकिस्तान की इस “शांति की राजनीति” ने अब मुस्लिम देशों के भीतर उसे संदेह की निगाहों से देखे जाने को मजबूर कर दिया है। सऊदी अरब और तुर्की जैसे देश चुप हैं, लेकिन ईरान, कतर और यहां तक कि इंडोनेशिया तक के अखबारों में पाकिस्तान की इस चाल को “कूटनीतिक विश्वासघात” बताया जा रहा है।
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शहबाज सरकार की बेशर्मी भरी ट्रंप-भक्ति
पाकिस्तान की मौजूदा सरकार, जिसे पहले ही आतंरिक अस्थिरता, आर्थिक संकट और धार्मिक उग्रवाद से जूझना पड़ रहा है, अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खुद को “शांति के पक्षधर” के रूप में दिखाने की कोशिश में लगी है। (Pakistan wants Noble Prize for Trump) लेकिन उसकी ये कोशिश ईरान की राख पर खड़े होकर ताजमहल बनाने जैसी है। क्या एक देश को शांति पुरस्कार का समर्थन करने का नैतिक अधिकार तब भी है जब उसी देश की खुफिया एजेंसियां और सेना एक और मुस्लिम देश पर हमले में मददगार बनी हों?
पाकिस्तान की नीति या निजी मजबूरी?
अब सवाल उठता है—क्या पाकिस्तान सच में क्षेत्रीय शांति चाहता है या वह केवल ट्रंप को खुश कर अपनी राजनीतिक मजबूरियों का समाधान ढूंढ रहा है? (Pakistan wants Noble Prize for Trump) क्या ईरान जैसे देश अब पाकिस्तान पर भरोसा कर पाएंगे? और सबसे बड़ा सवाल—क्या खून के धब्बों से रंगे हाथों को शांति का प्रतीक बना देना अंतरराष्ट्रीय राजनीति का नया ट्रेंड बन चुका है? इस कहानी का अंत अभी नहीं हुआ… क्योंकि ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार मिलना बाकी है! और पाकिस्तान की खुशामद की कहानी शायद अभी और भी गहराई में जाएगी।