Supreme Court: भारत के सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को आईपीसी की धारा 377 को खत्म करने के बाद, समलैंगिक समुदाय के सदस्यों द्वारा सम सेक्स विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग को लेकर आज एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के लिए कोर्ट नहीं बना सकता, बल्कि यह संसद का काम है। आईपीसी की धारा 377 को रद्द करने के बाद, समलैंगिक समुदाय ने सम सेक्स विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग बढ़ाई है। इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट ने आज फैसला सुनाया है। वकीलों ने विवाह के कानूनी मान्यता देने की याचिका दाखिल की थी।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “कोर्ट केवल व्याख्या कर उसे लागू कर सकता है, धारा 377 को रद्द करने के बाद समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की जरूरत है या नहीं, यह संसद का काम है। जीवनसाथी चुनना जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। जीवन साथी चुनने का अधिकार जीवन के अधिकार के अंतर्गत आता है। एलजीबीटी समुदाय समेत सभी व्यक्तियों को साथी चुनने का अधिकार है।
Supreme Court: स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर्ड करने की मांग की गई
यह मामला सुप्रीम कोर्ट में संविधान पीठ द्वारा चर्चा के लिए है। इस विवाह योग्यता के मामले में एक विशिष्ट बेंच में सुनवाई हो रही है। इस बेंच में जस्टिस संजय किशन कौल, एस रवींद्र भट्ट, हेमा कोहली और पीएस नरसिम्हा शामिल हैं। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 के एक पार्ट को रद्द कर दिया था, जिसके बाद अगर दो व्यस्क आपसी सहमति से समलैंगिक संबंध बनाते हैं तो यह अपराध नहीं है।
आईपीसी के इस फैसले के बाद समलैंगिक विवाह को मंजूरी मिलनी चाहिए, इसे स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर्ड करने की मांग की गई थी। मामले की सुनवाई अब संविधान पीठ द्वारा हो रही है, जो इस विवाह योग्यता के मामले में निर्णय देगी। यह विवाह योग्यता के मामले में सुप्रीम कोर्ट की विचारधारा को दर्शाएगा और समलैंगिक समुदाय के लोगों के लिए यह किस प्रकार का निर्णय आता है, यह देखने के लिए लंबा समय इंतजार करना होगा।