Supreme Court : देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को आरक्षण पर बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) में कोटे में कोटे को मंजूरी प्रदान कर दी है। कोटे में कोटे के मामले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि कोटे में कोटा असमानता के खिलाफ नहीं है। राज्य को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए एससी और एसटी का उप-वर्गीकरण करने का अधिकार है, जिससे मूल और जरूरतमंद कैटेगरी को आरक्षण का अधिक फायदा मिलेगा। यह फैसला सीजेआई जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने दिया।
Supreme Court : 6/1 से सुनाया फैसला
इस फैसले पर सीजेआई चंद्रचूड़ सहित 6 जजों ने अपना समर्थन दिया, जबकि जस्टिस बेला त्रिवेदी इस फैसले पर अह असहमत रहीं। यानी पीठ ने यह फैसला 6/1 सुनाया। इस फैसले के साथ सात सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने 2004 में ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए पांच जजों के फैसले को पलट दिया, जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा था कि एसी/एसटी जनजातियों में सब कैटेगरी नहीं बनाई जा सकी। सीजेआई ने कहा कि ‘हमने ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए फैसले को खारिज कर दिया है। उप वर्गीकरण अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता है, क्योंकि उपवर्गों को सूची से बाहर नहीं रखा गया है।

Supreme Court : एक ग्रुप को अधिक भेदभाव का करना पड़ता सामना
पीठ ने कहा कि वर्गों से अनुसूचित जातियों की पहचान करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले मानदंड से ही पता चलता है कि वर्गों के भीतर विविधता है। अनुच्छेद 15, 16 में ऐसा कुछ भी नहीं है जो राज्य को किसी जाति को उप-वर्गीकृत करने से रोकता हो। हालांकि, कोर्ट ने ये भी कहा कि उप वर्गीकरण का आधार राज्यों द्वारा मात्रात्मक और प्रदर्शन योग्य आंकड़ों द्वारा उचित ठहराया जाना चाहिए, वह अपनी मर्जी से काम नहीं कर सकता। कोर्ट ने कहा कि आरक्षण के बावजूद निचले तबके के लोगों को अपना पेशा छोड़ने में कठिनाई होती है। इस सब-कैटेगरी का आधार यह है कि एक बड़े समूह में से एक ग्रुप को अधिक भेदभाव का सामना करना पड़ता हैं।

Supreme Court : पलटा 2004 का बड़ा फैसला
साल 2004 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने कहा था कि राज्यों के पास आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की सब कैटेगिरी करने का अधिकार नहीं है, लेकिन आज सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय पीठ ने अपनी ही पीठ का फैसला पलट दिया है। अब राज्य सरकारों को अनुसूचित जाति जनजाति में सब-केटेगरी बनाने का अधिकार मिल गया है।

Supreme Court : जानिए क्या है पूरा मामला ?
दरअसल साल 1975 में पंजाब सरकार ने आरक्षित सीटों को दो श्रेणियों में विभाजित कर अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण नीति पेश की थी। आरक्षण नीति में एक बाल्मीकि और मजहबी सिखों के लिए और दूसरी बाकी अनुसूचित जाति वर्ग के लिए थी। यह नियम 30 साल तक लागू रहा।
2006 में ये मामला पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट पहुंचा और ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2004 के फैसले का हवाला दिया गया। पंजाब सरकार को झटका लगा और इस नीति को रद्द कर दिया गया। चिन्नैया फैसले में कहा गया था कि एससी श्रेणी के भीतर सब कैटेगिरी की अनुमति नहीं है, क्योंकि यह समानता के अधिकार का उल्लंघन है।