Allahabad High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि, अगर पति की नौकरी से कोई आय नहीं है तो भी वह अपनी पत्नी को भरण-पोषण प्रदान करने के लिए बाध्य है। कोर्ट ने कहा कि पति एक अकुशल मजदूर के रूप में रोज लगभग 300-400 रुपये कमा सकता है, जो पत्नी के भरण-पोषण के लिए पर्याप्त है।
हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ से जुड़ी न्यायमूर्ति रेनू अग्रवाल बेंच ने पारिवारिक अदालत के उस आदेश के खिलाफ व्यक्ति की पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं। दरअसल, पारिवारिक अदालत ने याचिकाकर्ता पति को आदेश दिया था कि वह उससे अलग रह रही पत्नी को भरण-पोषण के रूप में 2,000 रुपये मासिक दे।
न्यायमूर्ति अग्रवाल ने निचली अदालत के प्रधान न्यायाधीश को पत्नी के पक्ष में गुजारा भत्ते की वसूली के लिए पति के खिलाफ सभी उपाय अपनाने के निर्देश दिए। (Allahabad High Court) बता दें कि पति ने फैमिली कोर्ट नंबर 2 के आदेश को चुनौती देते हुए 21 फरवरी 2023 को इहालाबाद हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की थी।
याचिकाकर्ता पति ने दलील दी थी कि उसकी कोई आय नहीं है और वह पत्नी को भरण-पोषण नहीं दे सकता। लेकिन कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पति एक अकुशल मजदूर के रूप में रोज लगभग 300-400 रुपये कमा सकता है। यह राशि पत्नी के भरण-पोषण के लिए पर्याप्त है।
कोर्ट ने कहा कि पत्नी को भी अपने जीवनयापन के लिए आय का अधिकार है। पति को पत्नी की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए उसे भरण-पोषण प्रदान करना चाहिए।
यह फैसला महिलाओं के अधिकारों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। (Allahabad High Court) इससे ऐसे मामलों में महिलाओं को न्याय मिलने में मदद मिलेगी, जिनके पति नौकरी नहीं करते हैं।

Allahabad High Court: याचिकाकर्ता ने दी थी ये दलील
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि वह गंभीर रूप से बीमार हैं और उनका इलाज चल रहा है. (Allahabad High Court) वह किराए के कमरे में रहता है और उसके ऊपर अपने माता-पिता और बहनों की देखभाल की भी जिम्मेदारी है. तमाम दलीलों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने कहा कि पति यह साबित करने के लिए कोई दस्तावेज पेश नहीं कर सका कि पत्नी टीचिंग करके 10,000 रुपये महीना कमाती है. ऐसे में अदालत ने उसकी इस दलील पर भी विचार नहीं किया कि उसके माता-पिता और बहनें उस पर निर्भर हैं और वह खेती करके कुछ कमाता है.
अदालत ने इसलिए नहीं मानी दलील
अदालत ने माना कि पति एक स्वस्थ व्यक्ति है और शारीरिक रूप से पैसा कमाने में सक्षम है. यदि अदालत यह मानती है कि पति की अपनी नौकरी से या मारुति वैन के किराए से कोई आय नहीं है, तब भी वह अपनी पत्नी को भरण-पोषण प्रदान करने के लिए बाध्य है, जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने माना है. अदालत ने कहा, अगर वह खुद को श्रम कार्य में लगाता है तो वह अकुशल श्रमिक के रूप में न्यूनतम मजदूरी से प्रति दिन लगभग 300-400 रुपये कमा सकता है.