Anant Singh: दुलारचंद यादव की हत्या के बाद मोकामा विधानसभा क्षेत्र की राजनीति फिर से उबाल पर है। (Anant Singh) टाल क्षेत्र की बारूदी हवा ने यहां के चुनावी गणित को पूरी तरह उलझा दिया है। अब विकास से आगे बढ़कर जातीय समीकरणों और सामाजिक ध्रुवीकरण ने चुनावी मैदान को “बैकवर्ड बनाम फॉरवर्ड” के मोड़ पर ला खड़ा किया है।
गुरुवार की वारदात के बाद पूरा टाल इलाका खामोश है। अनंत सिंह और सूरजभान सिंह के पुराने प्रभाव के बीच अब एक तीसरे बाहुबली की एंट्री ने राजनीतिक समीकरण को और जटिल बना दिया है। (Anant Singh) जातीय राजनीति करने वाले नेता रात के अंधेरे में गुपचुप कैंपेनिंग कर रहे हैं। पहली बार मोकामा में मुकाबला त्रिकोणीय होता दिख रहा है।
स्थानीय युवक बताते हैं कि भूमिहार बहुल इस इलाके में अब यादव और धानुक समुदायों का समीकरण सत्ता के पारंपरिक संतुलन को चुनौती दे रहा है।
Anant Singh: 2015 का साया फिर लौटा
स्थानीय निवासी कहते हैं कि 2015 के चुनाव से पहले भी “पुटुस हत्याकांड” ने चुनावी माहौल को गरमा दिया था। (Anant Singh) उस समय भी अनंत सिंह पर आरोप लगे और उन्हें जेल जाना पड़ा था। तब लालू प्रसाद यादव ने इसे “यादव युवक की हत्या” बताकर मुद्दा बनाया था। हालांकि, अनंत सिंह ने तब जीत दर्ज की थी।
अब दुलारचंद यादव की हत्या ने फिर से भावनात्मक और जातीय लहर पैदा कर दी है। मृत्युंजय नामक स्थानीय मतदाता कहते हैं, “यह हत्या एक खेमे में भय का माहौल बना चुकी है, लेकिन इसका असर वोटिंग पर कैसा होगा, यह कहना मुश्किल है।”
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जातीय गणित जिसने साधा उसकी जीत तय
मोकामा विधानसभा क्षेत्र में कुल 2,84,108 मतदाता हैं। इनमें लगभग 90,000 भूमिहार, 60,000 धानुक, 30,000 यादव, 22,000 पासवान, 15,000 मुस्लिम, 10-12 हजार कुर्मी और मल्लाह, 10 हजार राजपूत, तथा करीब 30 हजार अन्य समुदायों के मतदाता शामिल हैं।
राजद प्रत्याशी जहां भूमिहार वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं जेडीयू अपने कुर्मी-कुशवाहा और धानुक वोटरों के साथ भूमिहार समर्थन पर भरोसा कर रही है। (Anant Singh) जन सुराज पार्टी के पीयूष प्रियदर्शी, जो धानुक समाज से आते हैं, अपने समुदाय के वोटों को अपनी ओर खींचने में जुटे हैं। जानकारों के अनुसार, इस बार मोकामा की लड़ाई बाहुबल से नहीं, बल्कि रणनीतिक चतुराई और जातीय गोलबंदी से तय होगी।
मोकामा की राजनीतिक विरासत
पूर्व विधायक दिलीप सिंह (अनंत सिंह के भाई) ने 1990 और 1995 में मोकामा से जीत दर्ज की थी, लेकिन 2000 के चुनाव में सूरजभान सिंह ने जेल में रहते हुए उन्हें हराया था। इसके बाद सूरजभान सिंह लोकसभा चले गए। अनंत सिंह ने 2005, 2010, 2015 और 2020 में क्रमशः जेडीयू, निर्दलीय और फिर राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा और हर बार जीत हासिल की।
2022 के उपचुनाव में उनकी पत्नी नीलम देवी (राजद) ने 16,741 वोटों से जीत दर्ज की।











