Chetna Borewell Accident: कोटपूतली। किरतपुरा बोरवेल में गिरी तीन वर्षीय बालिका चेतना को 10वें दिन बाहर निकाला गया। लेकिन, बच्ची को जीवित नहीं बचाया जा सका। बच्ची का पोस्टमार्टम के बाद रात को ही अंतिम संस्कार कर दिया। इधर, परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है। बच्ची के मरने की खबर से गांव में मातम छा गया। घरों में चूल्हे तक नहीं जले।
किरतपुरा के बड़ियाली की ढाणी में 23 दिसंबर को खेलते समय 700 फीट गहरे बोरवेल में गिरी चेतना को बुधवार शाम करीब 6.30 बाहर निकाला गया। एनडीआरएफ के जवान महावीर जाट सफेट कपड़े में लपेटकर चेतना को बाहर लाए। इसके बाद तुरंत बाद चेतना को एंबुलेंस से कोटपूतली के बीडीएम अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने बच्ची को मृत घोषित कर दिया।
Chetna Borewell Accident: पोस्टमार्टम के बाद सौंपा बच्ची का शव
पुलिस की मौजूदगी में डॉक्टरों ने पोस्टमार्टम के बाद बच्ची का शव परिजनों को सौंप दिया। इसके बाद रात में ही बच्ची का अंतिम संस्कार कर दिया। इस दौरान माहौल गमगीन था। हर किसी की आंखें नम थी। बालिका की मां धोली देवी बार-बार एक ही बात कहती रही कि मेरी बच्ची को एक बार और दिखा दो।
इसलिए रात में ही करना पड़ा अंतिम संस्कार
बच्ची 10 दिन से बोरवेल में फंसी हुई थी। ऐसे में उसका शरीर गलने लग गया था। जब बच्ची को बाहर निकाला गया था तब भी टीम के जवानों ने मास्क पहन रखे थे। ऐसे में प्रशासन की समझाइश से परिजनों व ग्रामीणों ने रात में अंतिम संस्कार करना ठीक समझा।
बोरवेल से बाहर निकालने के रेस्क्यू अभियान में एनडीआरएफ के जवान महावीर की विशेष भूमिका रही। अभियान के अन्तिम चरण में वहीं बालिका को बाहर निकाल कर लाया था। खुदाई में जब भी कोई परेशानी आई वही संकटमोचक बना। उसने बताया कि बोरवेल जहां झुका था वहीं बालिका फंसी थी।
प्लान ए के तहत बालिका के स्वेटर में हुक फंसा कर उसे बाहर निकालने का प्रयास किया गया। लेकिन स्वेटर फटने से अभियान कारगर नहीं रहा। उसने बताया कि बोरवेल में बालिका पत्थरों के बीच फंसी हुई थी। उसके दोनों तरफ के पत्थर काट कर बालिका को बाहर निकाला गया।
अब तक का सबसे बड़ा रेस्क्यू अभियान
बच्ची चेतना को बोरवेल से निकालने के लिए 220 घण्टे तक चला रेस्क्यू अभियान प्रदेश का अब तक का सबसे बड़ा रेस्क्यू अभियान रहा है। अभियान में एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, सिविल डिफेंस, पुलिस, नगर परिषद सहित अन्य विभागों की टीम दिन रात अभियान में जुटी रही। अभियान लगातार 10 दिन तक चलने के बाद भी बालिका को जीवित नहीं बचाया जा सका।